Why rain and how?

बारिश क्यों और कैसे होती है!

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हेलो दोस्तों मेरा नाम अनिल पायल है, आज तक इंसानों ने ब्रह्मांड के बहुत सारे रहस्यों को सुलझा दिया है. लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से रहस्य मौजूद है जिनको सुलझाना बाकी है. पृथ्वी की बहुत सारी प्रक्रियाएं ऐसी हैं जो देखने में बहुत सरल लगती हैं लेकिन वह ब्रह्मांड की सबसे जटिल प्रक्रिया में से एक हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. ऐसे ही रहस्यमई प्रक्रिया में से एक है बारिश का होना|

Why rain and how?

जैसा कि हम जानते हैं पृथ्वी पर होने वाली बारिश पानी के रूप में होती है. आसमान में बादलों से बरसने वाले पानी को ही बारिश कहा जाता है. पृथ्वी की सतह से पानी वाष्प बनकर ऊपर उठता है और वापस ठंडा होकर पानी की बूंदों के रूप में बरसता है. सूरज की किरणें हमारी पृथ्वी को गर्म करती रहती हैं जिससे पानी के काण गर्म होकर वाष्प बनकर एक दूसरे से दूर जाने लगते हैं यह वास्प इतनी हल्की होती है कि धीरे-धीरे यह आसमान की तरह बहने लगती है. हर 1000 फीट पर तापमान करीब 5.5 डिग्री कम होने लगता है.

Why rain and how?

वाष्प ऊपर उठने के साथ ही ठंडी होने लगती है और दोबारा तरल रूप धारण कर लेती है. पानी के यह छोटे-छोटे कण जब आपस में मिलते हैं तो उन्हें हम बादल कहते हैं. यह कण इतने हल्के होते हैं कि यह हवा में आसानी से उड़ने लगते हैं. उन्हें जमीन पर गिरने के लिए लाखों बूंदों को मिलकर एक क्रिस्टल बनाना होता है. और बर्फ का क्रिस्टल बनाने के लिए उन्हें किसी ठोस चीज की जरूरत होती है और इसके लिए पृथ्वी पर मौजूद जंगलों में लगने वाली आग के धुवे से निकलने वाले पार्टिकल्स, रेत के छोटे-छोटे कण, सूक्ष्म जीव और अंतरिक्ष से आने वाले माइक्रोमीटर राइट्स का इस्तेमाल होता है.

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बारिश करवाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ब्रह्मांड से आने वाले यही छोटे-छोटे कण यानी कि माइक्रोमीटर राइट्स करते हैं. ब्रह्मांड से हर रोज लगभग 2000 किलोग्राम माइक्रोमीटर राइट्स धरती के वातावरण से टकराते हैं. इनका आकार इतना छोटा होता है कि इन्हें बहुत कम घर्षण का सामना करना पड़ता है जिससे यह माइक्रोमीटर राइट्स छोटे छोटे बादलों में चला जाता है और इस प्रकार से यह कण पानी की बूंदों के क्रिस्टल बनने में मदद करता है. पानी की बूंदों से मिलते ही यह पानी के कणों के इर्द-गिर्द रिलीज होने लगता है और यह प्रक्रिया दिन भर में अरबों खरबों बार होती है. अभ यही क्रिस्टल दूसरी पानी की बूंदों के लिए आधार का काम करते हैं.

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इन छोटे-छोटे क्रिस्टल के आपस में मिलने से बर्फ बनता है. जब बर्फ का वजन ज्यादा हो जाता है तो वह धरती की तरफ गिरने लगती हैं जैसे-जैसे यह बर्फ धरती की तरफ गिरती है तापमान भी बढ़ने लगता है जिससे बर्फ छोटी-छोटी पानी की बूंदों के रूप में गिरने लगती है. जिसे हम बारिश कहते हैं| पृथ्वी पर मौजूद ज्यादातर पानी का हिस्सा बारिश से ही आता है.

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क्या आप जानते हैं हर समय आसमान में लाखों-करोड़ों टन पानी मौजूद रहता है अगर यह पानी एक साथ धरती पर गिर जाए तो पूरे समंदर और पूरी जमीन को 1 मीटर पानी से ढक सकता है. हर इंसान व जीव जंतु के शरीर में भी यही पानी मौजूद है जो आदिकाल में डायनासोर जैसे जीवो के शरीर में हुआ करता था | एक औसत इंसान के शरीर में लगभग 70% पानी होता है इसीलिए इंसान भी वर्षा चक्र का एक अहम हिस्सा है. यह पानी तब से रीसायकल हो रहा है जब से पृथ्वी पर पहली बार पानी का जन्म हुआ था लेकिन अब हम इंसानों ने अंधाधुंध पेड़ों की कटाई करके, पर्यावरण में प्रदूषण फैला कर बारिश को बहुत ही कम कर दिया है. अगर इसी प्रकार हम प्रकृति का दोहन करते रहे तो आने वाले कुछ सालों में शायद बारिश होने बंद भी हो जाए और पृथ्वी का तापमान बढ़ने से सभी जीव खत्म भी हो सकते हैं|