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कभी विश्व गुरु रहा भारत गुलाम क्यों हुआ

World Facts

हेलो दोस्तों मेरा नाम अनिल पायल है, दोस्तों अगर आप इतिहास के बारे में जानकारी रखते हैं तो आप निश्चित तौर पर प्राचीन भारत की आर्थिक मजबूती के साथ साथ सभ्यता, भाषा और विज्ञान के क्षेत्र में प्राचीन भारत द्वारा दिए गए महत्वपूर्ण योगदान के बारे में जानते होंगे | तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषा मानी जाती है जिसकी शुरुआत भारत में ही हुई थी| इसके अलावा संस्कृत को भी ना सिर्फ हिंदी बल्कि सभी यूरोपियन भाषाओं की जननी माना जाता है .

Why is India slaves

भारत ने ही पूरी दुनिया को पढ़ना लिखना सिखाया न जाने कितने गणितज्ञ और आविष्कारक भारत में हुए हैं. जिस समय भारत में वेद लिखे जा रहे थे, आयुर्वेद, ऋग्वेद और योग चिकित्सा का विकास हो चुका था उस समय तक यूरोप और अमेरिका में आदिवासी घूम रहे थे| भारत में ही सबसे पहले व्यापार की शुरुआत हुई थी जिससे भारत सोने की चिड़िया कहलाता था| सम्राट अशोक के समय में भारत का विस्तार अफगानिस्तान तक पहुंच गया था| लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्या कारण था जिस वजह से भारत गुलाम हो गया और हजारों वर्षों तक गुलाम ही रहना पड़ा? आखिर क्यों और कैसे भारत के शूरवीर राजाओं ने विदेशी आक्रमणकारियों के आगे घुटने टेक दिए. आज के इस आर्टिकल में मैं आपको कुछ ऐसे कारण बताऊंगा जिनके चलते भारत गुलाम बना था|

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भारत में जैन और बौद्ध धर्म का उदय

बौद्ध और जैन धर्म की मूल शिक्षा अहिंसा है. जैन धर्म में तो अहिंसा को परमो धर्म माना गया है| सम्राट अशोक के बौद्ध धर्म अपनाने के बाद उन्होंने युद्ध करना बिल्कुल ही छोड़ दिया था और अहिंसा का प्रचार प्रसार करने लगे | यहां तक की उन्होंने शिकार खेलने पर भी रोक लगा डी थी| युद्ध ना करने के कारण सैनिक कमजोर होते गए और वह अपनी सैन्य कला भूल गए| इसी प्रकार अहिंसा का प्रजा के बीच अधिक प्रचार करने से प्रजा भी अहिंसक हो गई जो की आसानी से किसी भी आक्रमणकारी का शिकार बन सकती थी|

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असल में अहिंसा भी एक बेहद कारगर हथियार है लेकिन यह हर हालात में लागू नहीं होता है| अगर कोई व्यक्ति आपके घर के बाहर रोजाना गंदगी फैला दें और आप रोजाना मुस्कुराते हुए उस गंदगी को साफ करते जाएं तो हो सकता है एक दिन उसे अपनी गलती का एहसास हो जाए और वह गंदगी फैलाना बंद कर दें| लेकिन एक गाल पर थप्पड़ खाने के बाद दूसरा गाल आगे करना अपने बचाव का बेहद ही हास्यपद तरीका है. यह ठीक वैसे ही है कि अगर कोई बदमाश हमारी बहन के साथ भी बदतमीजी करें और आप उसके पास जाकर कहे की भाई तूने मेरी बहन की तो इज्जत लूट ली अब मेरी मां की लूट ले… और सोचे कि इससे उस बदमाश का हृदय परिवर्तन हो जाएगा|

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जब मोहम्मद बिन कासिम ने सिर्फ 3000 सैनिकों के साथ अफगानिस्तान और सिंध पर आक्रमण किया तो उसने आसानी से फतेह हासिल कर ली क्योंकि वहां अधिक संख्या बौद्ध धर्म के लोगों की थी जिनके लिए अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म था| उन्होंने बिना लड़ाई किए ही अपनी हार मान ली जबकि मोहम्मद बिन कासिम की छोटी सी सेना को आसानी से हराया जा सकता था| उसके बाद गौरी और गजनी आए और उन्होंने अफगानिस्तान से अहिंसा वादियों का नामोनिशान मिटा दिया और आज वहां एक भी बौद्ध धर्म को मानने वाला व्यक्ति नहीं है|

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इसी तरह से जैन धर्म भी अति अहिंसावादी होने के कारण विदेशी आक्रमणकारियों का मुकाबला नहीं कर सका और यह दोनों ही धर्म सनातन धर्म की शाखाएं मानी जाती हैं तो निश्चित तौर पर इनकी शिक्षाओं का प्रभाव हिंदुओं पर भी पड़ा और वह भी अहिंसक हो गए| जिस कारण से वह मुगलों का सामना नहीं कर सके |दोस्तों मैं यहां पर बौद्ध धर्म या जैन धर्म के खिलाफ नहीं हूं लेकिन उन्हें इतना अहिंसावादी नहीं होना चाहिए था|

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समाज का बटा हुआ होना

हमारे देश में जनसंख्या की कोई कमी नहीं है लेकिन इतने सारे लोग होने के बावजूद भी यह लोग कभी समाज नहीं बन पाए| आज ही की तरह मध्यकालीन और प्राचीन भारत में भी 85% जनसंख्या वैश्य और शूद्रों की की होती थी| लेकिन शिक्षा पर अधिकार सिर्फ ब्राह्मणों का होता था और लड़ना सिर्फ क्षत्रियों का ही फर्ज़ होता था| जबकि क्षत्रियों की संख्या लगभग 5% ही थी. यानी जब बाहरी आक्रमणकारी हमारे देश पर हमला करते थे तो सिर्फ 5% लोग ही उनका सामना करते थे और बाकी के 85% लोग दूर बैठकर तमाशा देखते थे. क्योंकि यह उनका कार्य नहीं था|

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अगर कोई नीची जाति का माने जाने वाला व्यक्ति सेना में शामिल होना भी चाहता था तो उसे बेइज्जत कर के भगा दिया जाता था. भले ही वह कितना भी काबिल क्यों ना हो| लेकिन मंगोल, तुर्क और अफगानों की सामाजिक संस्थाओं में ऐसे विभाजन बिल्कुल भी नहीं थे वहां पर कोई भी व्यक्ति योग्य होने पर ज्ञान प्राप्त कर सकता था और सम्मान से जी सकता था और साथ ही सैनिक बनकर अपने देश की रक्षा भी कर सकता था| वहां एक खुली प्रतियोगिता थी इसलिए युद्ध कौशल का बहुत ही तेजी से विकास हुआ. भारत में असमानता इतनी ज्यादा थी कि क्षत्रियों में भी आपसी फूट से क्षत्रिय खुद आपस में लड़ते रहते थे. इसी वजह से विदेशी आक्रमणकारियों ने एक-एक करके सभी राजाओं को हराना शुरू कर दिया क्योंकि वह सब मिलकर एक साथ उन लुटेरों का सामना नहीं करते थे|

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अंग्रेजों ने भारत में मौजूद इस भेदभाव का खूब फायदा उठाया. अंग्रेजों में तो एक रणनीति काफी प्रचलित थी जिसे वे “फूट डालो राज करो” कहते थे| अफसोस की बात तो यह है कि हम भारतीयों में आज भी भेदभाव पूर्ण रूप से बरकरार है और जिसका फायदा आज अंग्रेजों की जगह कुछ करप्ट पॉलिटिशियन उठा रहे हैं|

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राजपूतों के बड़े-बड़े वसूल

थाईलैंड के पास एक छोटा सा देश हैं वियतनाम, जिसने अमेरिका जैसी महाशक्ति को लगातार 20 सालों तक चले युद्ध में हरा दिया था| एक समय में वियतनाम के विदेश मंत्री भारत आए हुए थे पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार उन्हें गांधी जी की समाधि दिखाई गई थी तो वह बोले कि मेवाड़ के महाराजा महाराणा प्रताप की समाधि कहां है? मुझे महाराणा प्रताप की समाधि देखनी है| जब उन्हें महाराणा प्रताप की समाधि दिखाई गई तो उन्होंने बताया कि हम आज भी स्कूलों में अपने बच्चों को महाराणा प्रताप की जीवनी पढ़ाते हैं. हम ने अमेरिका को महाराणा प्रताप की युद्ध नीति और उनके जीवन से प्रेरणा से हराया था|

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निश्चित तौर पर राजपूत बहुत शूरवीर थे लेकिन उनमें भी एकता की कमी से राजपूतों ने भी कभी संगठित होकर आक्रमणकारियों का सामना नहीं किया, एक और गलती जो राजपूत किया करते थे वह यह की उनके अपने उसूल अपनी जान से ज्यादा प्यारी थे| मोहम्मद गोरी ने आक्रमण किया तो पृथ्वीराज ने उसे पकड़ कर यह कह कर छोड़ दिया राजपूत कभी निह्थे दुश्मन पर वार नही करते हैं और पृथ्वीराज ने यह एक बार नहीं बल्कि 16 बार किया था| लेकिन जब वही मौका मोहम्मद गौरी को मिला तो उसने पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाते हैं बहुत ही बुरी तरह से गर्म सलाखों की सहायता से उनकी आंखें फोड़ दी थी और अमानवीय यातनाएं दी थी|

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चित्तौड़ के राजा रावल रतन सिंह ने भी अलाउद्दीन खिलजी को कई बार युद्ध में हराकर जिंदा छोड़ दिया लेकिन अलाउद्दीन खिलजी अवसर पाते ही धोखे से राजा रतन सिंह को धोखे से बंदी बना लिया. ठीक इसी तरीके से बाबर ने भी राणा सांगा के राजपूती उसूलों के फायदा उठा कर उन्हें युद्ध में हराया था| मुगल आक्रमणकारियों का सिर्फ एक ही वसूल था युद्ध में सिर्फ जीत चाहिए चाहे उसके लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े| राजपूतों ने कभी अपने राज्यों की सीमा नहीं बनानी चाहि| वे अपने किलो में ही संतुष्ट थे लेकिन इसके विपरीत मुगलों और खिलजीयो ने अपनी सीमाओं को विकसित करने के लिए जीवन भर संघर्ष किया. इसी वजह से वे एक बेहतरीन युद्ध कला सीख पाए|

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मुगलों के बारे में कहा जाता है कि वह भूख लगने पर अपने ही घोड़ों को को मारकर खा जाते थे. उनके अंदर बेहद खूंखार मानसिकता पनप चुकी थी जिससे वे एकजुट होकर अचानक से पूरी शक्ति लगा कर हमला करते थे| जब बाहरी आक्रमणकारी युद्ध के दौरान तोपों का इस्तेमाल करने लगेगी तो भी राजपूत अपनी तलवार पर ही गर्व और भरोसा दिखा दे रहे थे| मुगलों के साथ कई युद्धों में राजपूतों की सैन्य शक्ति मुगलों से ज्यादा थी लेकिन आपसी मनमुटाव के चलते वह सम्मिलित होकर कभी युद्ध नहीं कर पाए| आप सब जानते हैं की बड़ी से बड़ ीसेना का तब तक कोई फायदा नहीं होता जब तक कि वह संगठित होकर युद्ध ना करें|

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वही मुगलों की सेना उसूलों पर नहीं बल्कि अनुशासन पर युद्ध लड़ते थे. अगर कोई सैनिक किसी भी आदेश का उल्लंघन करता था तो दुश्मन से पहले उस सैनिक को सजा दी जाती रही और जाहिर है मुगलों की यही कटरता राजपूतों के उसूलों पर हमेशा भारी पड़ती रही और आगे चलकर भारत की गुलामी का कारण बनी|

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दोस्तों राजपूत बहुत ही बहादुर थे लेकिन आप सब जानते हैं समय के साथ इंसान को बदलना पड़ता है. लेकिन राजपूतों ने बदलाव स्वीकार नहीं किया और धिरे धिरे खत्म होते गये| गद्दारों के साथ गद्दारी करने में कोई बुराई नहीं होती लेकिन राजपूतों ने ऐसा भी नहीं किया वह हमेशा अपने दुश्मन को निहत्थे समझ कर जिंदा छोड़ते रहे|

दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं आपको भारत के गुलाम होने का कारण कुछ हद तक समझ आ गया होगा. आप भारत की गुलामी का क्या कारण मानते हैं हमें कमेंट में जरूर बताएं… आपकी कमेंट हमारे लिए बहुत ही बहुमूल्य है.

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