हमारी दुनिया में जंग का सिलसिला हजारों सालों से चला आ रहा है| लेकिन अलग अलग समय पर जंग के लिए अलग-अलग हथियारों का उपयोग किया गया| जैसे कि शुरुआती समय में लोग पत्थरों का प्रयोग करते थे और धीरे-धीरे तीर-धनुष, तलवारों का उपयोग होने लगा और फिर एक सेना दूसरी सेना से बेहतर होने के लिए अलग-अलग हथियार बनाने लगी और इसी क्रम में आज से 500 साल पहले आविष्कार हुआ बंदूक का जिसने की युद्ध के तरीके को बदल दिया| उस टाइम रॉक एंड फायर टाइप के बंदूक इस्तेमाल किए जाते थे लेकिन आगे चलकर भी बंदूकों की दुनिया में भी काफी सारे बदलाव आए और समय के साथ-साथ इसकी भी टेक्नोलॉजी में सुधार आता रहा|
दुनिया के 10 सबसे छोटे देश! जनसंख्या 800 व क्षेत्रफल 0.44 वर्ग किलोमीटर!
दुनिया भर के सैनिक जंग के मैदान में दुश्मनों के छक्के छुड़ाने के लिए AK-47 नाम से पहचाने जाने वाली ऑटोमैटिक राइफल का इस्तेमाल करते है. लेकिन क्या आपको पता है कि यह किसने और क्यों बनाया था? इस बंदूक को बनाने के पीछे भी बड़ी दिलचस्प कहानी है और यह कहानी शुरू होती है आज से 78 साल पहले से जब 1940 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान MIKHAIL KALASHNIKOV नाम के एक आदमी को कंधे पर गोली लग गई| दरअसल MIKHAIL सोवियत सेना में एक टैंक कमांडर थे और गोली लगने के बाद उनको हॉस्पिटल में भर्ती करवा दिया गया उसी दौरान सेना के कुछ सिपाहियों ने सोवियत सेना की खराब राइफल क्वालिटी और जर्मन राइफल की तुलना में उनकी रायफल काफी कमजोर होने की बात कही जिससे कि SOVIYAT सैनिकों की बड़ी संख्या में जान जा रही थी. इन्हीं समस्याओं को देखते हुए MIKHAIL ने एक बेहतरीन वेपन डिजाइन करने का निश्चय किया और अस्पताल से छूटने के बाद उन्होंने इस प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया|
भारत ही नही दुनिया के इन 10 देशों में भी पाए जाते है हिन्दू!
MIKHAIL मिशन 1942 में सब मशीन गन व 1943 में एक लाइट मशीन गन पर काम किया और फिर सन 1944 में उन्होंने सेमी आटोमेटिक गैस से ऑपरेट होने वाली एक बंदूक बनाई| सन 1946 में फिर वह एक नई बंदूक के साथ सामने आए जिसका नाम उन्होंने AK-46 रखा और फिर नवंबर 1947 में MIKHAIL ने पुरानी सभी बंदूकों से सीख लेकर काफी सारे बदलाव के बाद एक नई बंदूक पर काम किया| जिसके प्रोटोटाइप में बैरल के ऊपर एक लंबी गैस पिस्टम फिट थी और इसी राइफल का नाम AK-47.
भारत के टॉप न्यूज़ एंकर महीने में कितना कमाते हैं और ये पढ़े कितने है?
बंदूक का डिजाइन काफी सिंपल था और इसे इस्तेमाल करना भी काफी आसान था| इस बंदूक को 1948 में ट्रायल के लिए आर्मी को दे दिया गया| आर्मी ने भी इसे हर कंडीशन में यूज करने के लिए सबसे बेहतरीन हथियार बताया और फिर 1949 से ही यह राइफल सोवियत और रूसी सेना के साथ है| साथ ही दुनिया भर के लगभग 106 देशों के सैनिक इस राइफल का प्रयोग करते हैं. AK-47 नाम में A काम मतलब ऑटोमेटिक, K का मतलब KALASNIKOV साथ ही 1947 में इसका आविष्कार हुआ था तो 47 वहां से लिया गया और इसके डिजाइनर MIKHAIL ने इस बंदूक से अपने पूरे जीवन में एक भी पैसा नहीं कमाया| इस आविष्कार को वह अपने देश की सेवा मानते थे और MIKHAIL की मृत्यु भी अभी कुछ साल पहले 2013 में हुई उस समय उनकी उम्र 94 साल थी.