इंसान से सच उगलवाने वाला नार्को टेस्ट क्या होता है!
हेल्लो दोस्तों मेरा नाम अनिल पायल है,आपने नार्को टेस्ट के बारे में तो सुना ही होगा |आपने कई बार न्यूज़पेपर, टीवी चैनल्स, या मूवीस में देखा होगा | तो आखिर नार्को टेस्ट होता क्या है? और इसका उपयोग कब और कैसे किया जाता है? इसके बारे में आज मैं आपको डिटेल से बताऊंगा |
सबसे पहले हम बात करते हैं कि नार्को टेस्ट होता क्या है. नार्को टेस्ट एक प्रकार का टेस्ट है जब किसी मुजरिम को इथेनॉस, सोडियम, पेंटाथोल, बॉबीजॉर्ज बगैरा केमिकल के इंजेक्शन दिए जाते हैं तो यह दवाई इंसान को आधा बेहोश कर देती है. फिर इंसान सेमी कोसियेन्स की सिचुएशन में चला जाता है और जब हम सेमी कोसियेन्स सिचुएशन में होते हैं तो उस समय हम चाहकर भी झूठ नहीं बोल सकते हैं, क्योंकि झूठ बोलने के लिए कल्पना का सहारा लेना पड़ता है और अपनी तरफ से कुछ बातें जोड़ने पड़ती हैं. कुछ बातें हमें छुपानी पड़ती हैं और हमें अपने दिमाग का सहारा लेकर एक कहानी बनानी होती है. जबकि सच बोलने के लिए ना तो हमे ज्यादा दिमाग की जरूरत होती है और ना ही कोई कहानी बनानी पड़ती है बस जो हमारे दिमाग में आता है बोल देते हैं. जो की पूरी तरह से सच होता है |
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नार्को टेस्ट का इस्तेमाल सबसे पहले 1922 में रॉबर्ट हाउस नामक टेक्सास के एक डॉक्टर ने दो मुजरिमों पर किया था | भारत में सीबीआई जांच के दौरान इंटराविनश बॉबी टुवेट्स का इस्तेमाल करती है. इंटराविनश बॉबी टुवेट्स एक दवा है जो कि मुजरिम को इंजेक्शन के द्वारा नार्को टेस्ट के दौरान दी जाती है | भारत में पुलिस इसे कई सालों से इस्तेमाल कर रही है जो कि खुद को दोषी ठहराने के खिलाफ दिए गए अधिकारों का उल्घन है |
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चलिए हम बात करते हैं कि नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है? नार्को टेस्ट करने से पहले जिस मुजरिम से पूछताछ करनी होती है उसकी सबसे पहले उम्र, हेल्थ को देखा जाता है | उसके बाद यह तय किया जाता है कि उसके अनुसार उसके ऊपर कौन से केमिकल का इस्तेमाल करना सही रहेगा. क्योंकि अगर दवाई गलत हुई तो इससे इंसान की मौत भी हो सकती है या फिर इंसान के दिमाग पर इसका बहुत बुरा असर पड़ सकता है | इसलिए उम्र और हेल्थ के आधार पर ही उसको इंजेक्शन दिया जाता है लेकिन इंजेक्शन देने से पहले उसको दो मशीनों से जोड़ा जाता है |
नार्को टेस्ट 2 तरीकों से किया जाता है, एक तो पॉलीग्राफ मशीन से और दूसरा ब्रेन मैपिंग टेस्ट के द्वारा | सबसे पहले हम बात करते हैं पॉलीग्राफ मशीन के बारे में , जब किसी मुजरिम का नार्को टेस्ट किया जाता है तब पॉलीग्राफ मशीन उसका ब्लड प्रेशर, प्रालस रेट, ग्रुप स्पीड, हार्ट रेट और उसके शरीर में होने वाली एक्टिविटीज को रिकॉर्ड करता है और फिर उसको डिस्प्ले करता है | फिर मुजरिम से कुछ आम क्वेश्चन किए जाते हैं. जिनमें वह झूठ नहीं बोल पाता | जैसे उसका नाम .उसके माता पिता का नाम. उसके घर का एड्रेस. वह क्या काम करता है, उसकी उम्र क्या है और इस तरह से सवाल जवाब का एक कफलो बनता है | उसके बाद धीरे-धीरे उससे वह सवाल पूछे जाते हैं जिनको इन्वेस्टीगेशन ऑफिसर जानना चाहते हैं |
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तो इस तरह से मुजरिम सच बोल देता है | हालांकि कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि सेमी कोसियेन्स यानी कि आदि बेहोशी की हालत में भी कुछ मुजरिम झूठ बोल जाते हैं, मगर ऐसा सिर्फ 5 % लोग ही कर पाते हैं. लेकिन आमतौर पर ज्यादातर केसेस में मुजरिम सच ही बोलते हैं |
दूसरा होता है ब्रेन मैपिंग टेस्ट, ब्रेन मैपिंग टेस्ट का इन्वेंशन अमेरिकी न्यूरोलॉजिस्ट डॉक्टर लोरेन ने 1962 में किया था और आज इस टेस्ट का बहुत सी जगहों पर इस्तेमाल भी किया जाता है | यह एक ऐसा टेस्ट है जिसमें किसी स्पेशल पर्सन को कंप्यूटर से जुड़ा हुआ एक हेलमेट पहना जाता है | इस हेलमेट में सेंसर लगे होते हैं और यह सेंसर दिमाग में होने वाली सारी हलचल को स्कोर रिकॉर्ड करते हैं और इन्हीं हलचल को स्क्रीन पर दिखाते हैं | ब्रेन मैपिंग के दौरान मुजरिम को तरह तरह की आवाजें सुनाई जाती हैं और उसके सामने रखी एक बड़ी डिस्प्ले पर कुछ फोटोस और वीडियोस भी दिखाया जाते हैं. फिर जिस केस में वह मुजरिम पकड़ा गया है उसको उससे जुड़े हुए वीडियोस दिखाए जाते हैं और ऑडियो भी सुनाए जाते हैं और अगर मुजरिम अपराध से जुड़े किसी आवाज या सिग्नल को पहचानता है तो पी3 तरंगे स्क्रीन पर दिखाई देती हैं | जबकि एक निर्दोष आदमी इन तरंगो को नहीं पहचान पाता है और यह तरंगें पैदा नहीं होती हैं |